पटना. आंध्र प्रदेश में एक फैक्ट्री में 4 बिहारी मजदूरों की मौत ने फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर रोटी की खातिर कब तक परदेश में जान गंवाते रहेंगे बिहारी? एक महीने के अंदर अपने परिवार की परवरिश को लेकर दूसरे राज्य गए 20 से ज्यादा बिहारी मजदूरों की मौत हो चुकी है. कितनों के अरमान पल में चकनाचूर हो गए. जिनके भविष्य को संवारने के लिए अपनी मिट्टी को छोड़ा उनके सामने फिर अंधेरा छा गया है. आखिर बिहार में क्यों नहीं रोजगार मिल पाता है, ताकि लोग पेट की खातिर अपने परिवार से कोसों दूर जाने को मजबूर न हों?
गुरुवार को ही वाराणसी में साड़ी फिनिशिंग की एक फैक्ट्री में आग लगने से बिहार के अररिया जिले के 2 लोगों की मौत हो गई. पिछले महीने तेलंगाना में एक गोदाम में आग लगने से 11 बिहारी मजदूरों की मौत हो गई थी. ये मजदूर कटिहार और सारण के रहने वाले थे. इस दर्दनाक हादसे के दिन ही उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के विजयनगर इलाके में नाला खुदाई के दौरान एक स्कूल की दीवार गिरने से 3 मजदूर की मौत हो गई थी. ये सभी अररिया जिले के जोकीहाट के रहने वाले थे. इन मजदूरों में कोई घर बनाने के लिए पैसे जुटाने को गया था तो कोई बहन की शादी के लिए पैसा कमाने परदेस गया था. जब भी ऐसी घटना होती है तो नेता से लेकर अधिकारी तक शोक संवेदना जाहिर करते हैं. मुआवजों की घोषणा होती है. मीडिया में भी सुर्खियां बनती हैं, लेकिन फिर मामला शांत हो जाता है. जिन पर विपत्ति का पहाड़ टूटता है, वे खुद अपनी लड़ाई लड़ने को मजबूर हो जाते हैं.
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रोजगार का अभाव
कश्मीर से कन्याकुमारी और मणिपुर से गुजरात तक रोजगार की तलाश में गए बिहार के लोग आपको मिल जएंगे. साल 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2001 से 2011 के बीच 93 लाख लोग रोजगार की तलाश में बिहार से दूसरे राज्यों में गए. यह बिहार की आबादी का करीब 9 प्रतिशत है. बिहार से दूसरे राज्यों में जाने वाले 55 प्रतिशत लोग रोजी-रोटी के लिए पलायन करते हैं. देश में पलायन करने वाली कुल आबादी का 13 प्रतिशत हिस्सा बिहार से आता है. इनके पलायन की सबसे बड़ी वजह रोजगार है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार इस साल जनवरी में बिहार में बेरोजगारी दर 13.3 प्रतिशत रही. दिसंबर में यह 16 प्रतिशत थी, जो पिछले साल का उच्चतम स्तर था.
क्यों नहीं मिलते अवसर?
सरकार के कर्ता धर्ता अक्सर कहते हैं कि बिहार राज्य लैंड लॉक्ड है, इसलिए यहां बड़े उद्योग-धंधे नहीं लगते हैं. जानकारों का कहना है कि हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली भी तो लैंड लॉक्ड हैं, फिर वहां इतने उद्योग कैसे लगे? सवाल विकास की नीतियों को सही ढंग से क्रियान्वित करने का है. जानकारों के मुताबिक औद्योगिक नीतियों में खामियों की वजह से लोग बिहार में निवेश करने से कतराते हैं. सिंगल विंडो क्लीयरेंस की बात सिर्फ कहने के लिए है. चाहे जमीन उपलब्ध कराने की बात हो या सुरक्षा देने की लोगों में प्रशासनिक अमले पर भरोसा नहीं हो पाता है. वैसे एक सच्चाई यह भी है कि बिहार में जमीन का रकबा छोटा है.अगर कोई उद्योगपति अपना उद्योग लगाना चाहे, तो उसे कम से कम 40 से 50 लोगों से जमीन लेनी होगी. जमीन देने के लिए इतने लोगों को एक साथ राजी करना थोड़ा मुश्किल है. उपजाऊ जमीन होने के कारण लोग अपनी जमीन छोड़ना भी नहीं चाहते हैं. नतीजतन सरकार मांग के अनुसार जमीन नहीं उपलब्ध करा पाती है.
रोजगार की कई योजनाएं
सरकार लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार मुहैया के लिए कई योजनाएं चला रही हैं. मजदूरों को उनकी योग्यता के अनुसार काम मिले इसके लिए स्किल मैपिंग और सर्वे का काम किया जा रहा है. पश्चिम चंपारण जैसे कुछ जिलों में कलस्टर बनाकर स्व-रोजगार को बढ़ावा दिया गया है. कुछ लोगों को रोजगार मिला भी. इसके अलावा बेरोजगारों के लिए स्वयं सहायता भत्ता योजना, परिवहन, पशुपालन और कृषि विभाग ने कई योजनाएं लागू की हैं. नेशनल करियर सर्विस पोर्टल (NCSP) के आंकड़े बता रहे हैं कि बिहार में पिछले एक साल में बेरोजगारों की संख्या तीन गुना बढ़ी है. ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो जाता है कि विकास की ऐसी नीति बने जो रोजगार उत्पन्न करने वाली हो, ताकि परदेश जाने की नौबत ही न आए.
(नोट: यह लेखक के अपने विचार हैं.)
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Tags: Bihar News, Rural Migration
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